शुक्रवार, 15 जनवरी 2010

हो सके तो माफ करना आन्‍टी

रह-रहकर गूंजता कुत्‍तों का रूदन चर्च परिसर में रुकने से रोकता है। ये कुत्‍ते अपनी मां को खोकर अनाथ हो चुके हैं। उस मां को जिसने इन्‍हें जना तो नहीं था अलबत्‍ता पाला-पोसा अपनी औलाद की मानिन्‍द। जाड़ा पड़ा तो शीरीन ने अपने तन की फिक्र नहीं की, कुत्‍तों को बेहतरीन स्‍वेटर पहनाये। भोजन भी एक से बढ़कर एक। कभी गोश्‍त पका तो कभी दूध और ब्रेड से काम चला लिया। कड़ाके की ठंडक ने जब शीरीन महावीर को लीला तो संबंधी इतना नहीं रोये, जितना कि यह  कुत्‍ते रोये। कुत्‍ते रोये ही नहीं बल्कि अभी भी चुप लगाने का नाम नहीं ले रहे। लखनऊ के इस्‍लामिया कालेज के बगल रेड चर्च परिसर में रहने वाली शीरीन महावीर को होश संभलते ही सड़क के आवारा कुत्‍तों से ऐसा लगाव हुआ कि पूरी जिन्‍दगानी होम कर डाली उन्‍होंने कुत्‍तों पर। शीरीन ने शादी नहीं की। क्‍यों नहीं की, इस सवाल पर शीरीन कहने लगती- क्‍या बताऊं साहब। अपने लिये तो सब जीते हैं। मैं तो कुछ भी नहीं करती इनके लिए। सब गाड ही करता-कराता है। मै तो सिर्फ ऊपर वाले की वाचमैन हूं। शीरीन को अपनापे में कुछ लोगों ने खिताब दे डाला-'कुत्‍ते वाली आन्‍टी' और आन्‍टी भी ऐसी कि कभी किसी की बात का बुरा नहीं माना। एक महाविद्यालय में अंग्रेजी की लेक्‍चरर रही शीरीन का बहन की लड़की सुखबीर को छोड़कर इस दुनिया में कोई सगा न था। नौकरी के दौरान शीरीन ने अपनी पूरी तनख्‍वाह कुत्‍तों पर उड़ा डाली और रिटायर हुई तो पेंशन भी कुत्‍तों पर न्‍यौछावर कर दी। अपने पहनने -खाने की कभी कोई परवाह नहीं की। कुत्‍तों के लिए जो बना उसी में से कुछ अपने लिये भी निकाल लिया। कोई कुत्‍ता बीमार होता  तो शीरीन की पेशानी पर बल पड़ जाते। डाक्‍टरों के यहां दौड़ती-भागती और दवाइयों का इंतजाम करती। खुददारी इतनी कि कभी किसी के सामने हांथ पसारना गंवारा नहीं किया। कोई दशक भर पहले मेरा परिचय हुआ था शीरीन से। हजरतगंज में शान के साथ टहलती शीरीन और उनके पीछे अलमस्‍त आवारा कुत्‍तों की एक लम्‍बी फौज। हर शख्‍स कभी शीरीन को घूरता तो कभी उनके अमले को और शीरीन थी कि बस अपनी ही धुन में चलती चली जा रहीं थी। कुत्‍तों के प्रति हमदर्दी शीरीन में कूट-कूट कर भरी थी। अपनी इस हमदर्दी के मूल में वह पिता का स्‍मरण कर आंखों में आंसू भर लेती। कहती - वह इंसान से कहीं ज्‍यादा जानवर में प्रभु को पाते थे, यह राज उन्‍होंने मुझसे जब से शेयर किया था तब से कुत्‍ते ही मेरे सर्वस्‍व हैं। 
इधर बीच महंगाई ने तोड़ सा दिया था शीरीन को। फंड वगैरह तो पहले ही कुत्‍तों पर कुर्बान हो चुका था। कभी चूल्‍हा जला तो ठीक वरना होटल से काम चल जाता। पहले कुत्‍ते बाद में खुद खाया,ऐसा था शीरीन का दस्‍तूर। होटलवाला भी कुछ रहम दिल था। शीरीन उसकी तारीफ के पुल बांधती रहतीं। कहतीं-बड़ा नेक इन्‍सान है। बहुत दुआएं देती उसको। कुत्‍ते भी शीरीन पर जान छिड़कते थे। शीरीन बीमार तो कुत्‍ते रोते, शीरीन खुश तो कुत्‍ते दहाड़ते। कुत्‍ते आपकी खुशी कैसे भांप लेते हैं, शीरीन बताने लगतीं- अजी इनको तो बस बढि़या खाना चाहिए। अच्‍छा खाना मिल गया तो सारे के सारे जनाब बहुत खुश हो जाते हैं। कुत्‍तों के नाम भी शीरीन ने अलबेले रख छोड़े थे। दड़बेनुमा घर में किसी का नाम तेन्‍दुलकर तो कोई वीरू। शाहरुख से लेकर आमिर तक। कुतियों के नाम भी ऐसे ही कुछ- जैसे रानी मुखर्जी, शिल्‍पा बगैरह। सब के सब शीरीन की एक पुकार पर भागे चले आते।

इस्‍लामिया की ओर से गुजरते वक्‍त शीरीन से यदाकदा मुलाकात हो जाती थी लेकिन फोन पर उनसे सम्‍पर्क बना रहता। एक रोज सूखी रोटी खाती शीरीन को देख दंग रह गया। शीरीन चीथड़ों में लिपटी थीं। उनकी यह हालत देखी न गई मुझसे। खख्‍खाशाह तो था नहीं लिहाजा बातो ही बातों में अपनी मित्र रोमा हेमवानी जी से इस प्रसंग की चर्चा कर बैठा। यह उनकी सदाशय वृत्ति ही थी कि बिना सवाल किये एक निश्चित राशि प्रतिमाह भिजवाना उन्‍होंने शुरू कर दिया। शीरीन ने फोन करके कुछ झेपते हुए बातचीत शुरू की- यह क्‍यों करवा दिया आपने, खैर गाड की ओर मैडम को थैंक्‍यू बोलियेगा। अबकी जाड़ा बहुत ही किटकिटाऊ पड़ा। शीरीन का फोन आया-क्‍या एक कम्‍बल दिलवा देंगे किसी से। 'नहीं, मैं खुद लेकर दे जाऊंगा'-मैंने कहा लेकिन यह बात महज बतफरोशी होकर रह जायेगी, यह अनुमान न था। कम्‍बल ले आया था लेकिन शीरीन का फोन आता रहा और मैं रोज वायदा करके भी काम में फंसता रहा। आज अल सुबह शीरीन की भांजी सुखबीर का फोन आया- आन्‍टी नहीं रहीं, ठंडक लग गई थी। फोन रखते ही मानो सन्निपात सा हो गया, काटो तो खून नहीं-बस एक सवाल-'अब वह कम्‍बल किसे दूंगा'।
निशातगंज कब्रिस्‍तान में 79 बरस की न जाने कितने  कुत्‍तों की मां शीरीन दफना दी गई हैं। लखनऊ सूबे की राजधानी है। तमाम पुरस्‍कार, तमगे यहां घोषित होते और बंटते हैं लेकिन शीरीन सरीखे लोगों का नाम इन पुरस्‍कारों की सूची में नहीं होता। शीरीन के सारे बच्‍चे अनाथ हो गये हैं। खुद को भी अपने ही हांथों ठगा महसूस कर रहा हूं मैं। अब किसी रोज कब्रिस्‍तान में सो रही शीरीन को कम्‍बल ओढ़ाकर अपनी झेप मिटाने का प्रयास करूंगा लेकिन शीरीन के हांथ में कम्‍बल न दे पाने का मलाल ताजिन्‍दगी सालता रहेगा। परमात्‍मा शीरीन को अपने चरणों में जगह देगा। हो सके तो माफ करना आन्‍टी।  - राजू मिश्र

22 टिप्‍पणियां:

  1. समस्‍त मानवीय संवेदनाओं यथा दया करुणा प्रेम अनुराग आदि से रहित होते जा रहे समाज में जब इस तरह के पात्रों के होने का पता चलता है तो सचमुच भविष्‍य के प्रति आश्‍वस्ति का भाव पैदा होता है कि मानवता को अध:पतन की राह पर जाने से शीरीन जैसे लोग ही रोक पाएंगे।
    आभार परिचय कराने के लिए।

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  2. बहुत ही मएमस्पर्शी और प्रेरणा देती कव्हानी है। बहुत बार ह सेही समय को नज़र अंदाज़ कर कुछ ऐसे पल खो देते हैं जो जीवन भर हमे पश्चाताप की आग मे जलाते हैं । कंबल न पहुँच पाना तो माध्यम है इस इस संवेदना को प्रकट करने का। सही बात है बहुत से लोग ऐसे ही चले जाते हैं जो मानवता के लिये उदहारण स्वरूप होते हैं मगर लोग उनके कामों को देख नही पाते या देखना नहीं चाहते। वैसे भी ऐसे लोगों के लिये अगर किसी का एक आँसो भी गिर जाये तो उनके लिये वो भी पुरुस्कार ही है। बहुत अच्छी लगी मानवीय संवे4दनाओं से भर पूर कहानी धन्यवाद्

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  3. सर, ऐसे शख्स बहुत कम मिलते है जो दूसरों के बारे में सोचते है, आपका लेख बहुत अच्छा है और मुझे लगता है कि हर पढ़ने वाले के दिल को छु लेगा।

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  4. ओह्ह, सचमुच क्या कहानी लिखी है आपने। हाँ यह बात सच है कि इन्सान की मौत उपरवाले के हाथ में है मगर आप समय पर सहायता कर पाते तो शायद वह कम्बल कुछ दिन के लिये आपको भगवान का दर्जा देता।

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  5. अब वह कम्‍बल किसे दू ?
    सच्चे इंसान किसी पुरस्कार के मोहताज नहीं होते.
    कृपया फ़ॉन्ट का आकार बढ़ा लें और वर्ड verification हटा लें

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  6. राजू सर, प्रणाम
    बहुत दिनों बाद आपके ब्लाग में पंहुचा तो यह सब पढ़कर कुछ क्षण के लिए सन्न रह गया. क्योंकि मुझे भी कई बार इस आंटी से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था. बात उन दिनों कि है जब मैं पत्रकारिता के अपनी जगह खोज रहा था. अगर आज मैं प्रदीप सर के ब्लॉग पर नहीं जाता तो शायद आप का ब्लॉग नहीं दीखता और मैं इस खबर से दूर ही रहता. सर हर किसी को जितना संभव हो मदद करना चाहिए पर आखिर अब इनडिविजुवली कितनों की मदद हो सकती है. यह लंबा चौड़ा सिस्टम. अरबों खरबों का टैक्स और जनहित योजनाएं कहां हैं.आप तो राजधानी मैं हैं जानते हैं कि गरीबी और अभाव को किसी एक का भला करके नहीं मिटाया जा सकता. इसके लिए योजनाओ को बनाने और बिना भ्रष्टाचार के लागू कराने पर बल देना होगा. मुझे लग रहा है कि अब मैं लीक से हट रहा हूँ. लेकिन आप महान हैं. ये मैं नहीं हर वो कहता है जो आपको जानता है. रही बात खबर कि तो आप जानते हैं कि आज कल कैसे ख़बरें लिखी और दिखाई जाती है.
    नीरज मिश्र
    ग्वालियर

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  7. Gurrdev aap ki kalam aur aap dono lajavab hain. aap pahle bhi bahut krantiya kar chuke hain har elake mai

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  8. I was deeply moved by the story.I can't believe still there are animal lovers who can sacrifice their life for there cause.We have an organization Hari Om Seva Kendra who helps the poor and needy people by way of Medicines, blood edibles andother means. We would like to help such who help others.Would feel happy to be associated for such cause.Anil Rastogi

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  9. बहुत अच्छा ब्लॉग लगा आपका राजू जी. शीरीन जी जैसे लोग समाज में एक आध ही हो पाते है. बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति लगी. कृपया वर्ड-वेरीफ़िकेशन हटा दें तो टिप्पणी कर् पाना सुविधाजनक होगा.

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  10. अपने लिए जीने वालों की कमी नहीं पर औरों के लिए जीने वाले विरले ही होते हैं। आण्टी ने किसी पुरस्कार की कामना की होती तो वह उनके कदम चूमते। आपका यह मर्मस्पर्शी लेख अण्टी के लिए सच्ची श्रद्धांजलि है। हांड-मांस के पुतलों के बीच एक सच्चे इंसान की श्रद्धांजलि!

    -आलोक त्रिपाठी

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  11. मन में प्रश्न कौंधता है, आण्टी के बच्चों का क्या हुआ?


    आलोक त्रिपाठी
    09044585380
    09453408284

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  12. kuch kahane layak nahi chorra apne! Acha ho ki ham esi personlity ko unki maut se pahle he aam logo ki najar mein layen taki fir kabhi koi shirin thand ke bahane asmay kaal kalwit na ho.

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  13. written by Professor cs chauhan kanpur, January 17, 2010
    I ALSO CRIED LIKE A dog IN PAST. But situations are different. HERE dogs are crying after the death of lady. That’s why its natural happening. Every one cry when family member leaves for ever. Five years before I also cried on railway station charbag lucknow. At that time my master was alive and was on bed. God lesion my prayer and my sir appeared in office after one month. Why this all
    needed to write because we cry when things are gone out of our
    control. According to me its not write time for dogs to cry. If they
    do same thing during her life may be goD give some MORE time to LIVE WITH lady. At last full of teaching are in this article. What I think I viewed. Ram
    ram.
    Professor cs chauhan kanpur

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  14. शुक्रिया चौमासा! राजू जी आपका भी धन्यवाद। आपके इस लोकप्रिय ब्लाग पर मेरी टिप्पणी देख वर्षों पुराने मेरे एक मित्र का फोन आया, जिनसे विगत एक-डेढ़ साल से सम्पर्क नहीं हो पाया था।
    -आलोक त्रिपाठी 09044585380, 09453408284

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  15. राजू जी आप ने बहुत अच्छा किया ,शीरीं जैसे लोगबेशक कम हैं लेकिन हैं जरुर.आप ने जो सम्मान दिया है सचमुच अपने भीतर के इन्सान को जिन्दा रखने का एक प्रयास किया है.आप को बहुतबधाई.
    m-09818032913

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  16. बहुत अच्छी नज़र है तुम्हारी ... राजू नज़र न लगे ! पत्रकारों और पत्रकारिता ( अगर कहीं मिले या दिखे ) से अपील करो कि...पोलिटिक्स , बॉस की निंदा - स्तुति और सीनयर में अहंकार व चापलूस प्रियता के बखान के साथ कभी ...ऐसे ' जीवन की जंग के विजेताओं पर ' भी अपनी लेखनी की कृपा बरसा दिया करें ... समय और समाज बड़ा गुण गायेगा उनका ! तुम्हें हार्दिक स्नेह ! --टिल्लन रिछारिया

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  17. raju misra ji,
    aapka yah rekhachitra rochak-marmik-samyik jeevan ki logon ke hriday men vyapt thandak aur sheerin ke hriday ki garmahat ki garmjoshi bayan karti hai jo svayam jeevon (svanon) ko kambal udhhakar thithurti muskarati chali gayee.
    Aaj bhi Gomti Nagar jaise kitne Lucknow ke mohallon men asankhy makanon ke asankhya kamre agyaat atithiyon ki pratiksha men khali pade rahte hain aur sheerin jaise bahut se log chhat aur kambal ki kami se dam torte hain kyonki ve sabhi shanti aur ahinsa ke pujari hai.
    achchhe lekh ke liye badhai.
    suresh-chandra shukla 'sharad alok'
    Oslo, Norway
    speil.nett@gmail.com

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  18. bhai aise log daivanshi hote hain aapne in par apni kalam chala meri aatma ko chhoo liya hai.

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